वैलेंटाइन पर मधुमक्खियों की पप्पियाँ - BEE My Valentine!
ट्रैंकिंग की अपनी पिछली पोस्ट में मैंने अभिनय के सांगहँस (संघर्ष) की बात की थी। लेकिन इस बार की ट्रैंकिंग असली संघर्ष में तब्दील हो गई। पिछली बार जहाँ सीधे-सपाट रास्ते होते हुए इंदौर के पास च्यवनऋषि के आश्रम तक गए थे। वहीं इस बार हमने सिमरोल के आगे जूना पानी को अपना गंतव्य बनाया था। सभी उत्साहित थे क्योंकि हमें दो पहाड़ों को पार करके लगभग 7 किमी का रास्ता तय करना था। यकीन मानें, जूना पानी तक पहुँचने का रास्ता वाकई चुनौतियों भरा रहा जहाँ तक हम पतली सी पहाड़ी पगडंडिंयों पर फिसलन भरे पत्थरों से बचते-बचाते पहुँचे थे। रास्ते का ये संघर्ष तो हर ट्रैंकिंग का हिस्सा होता है। किंतु असली संघर्ष तो जूना पानी के कुण्ड तक पहुँचने के बाद ही शुरू हुआ। और वहाँ से वापस लौटने की कहानी भी जीवनभर याद रहने लायक बन गई।
वैलेंटाइन डे पर कहीं ट्रैंकिंग पर जाना कुछ लोगों को अजीब लगेगा। लेकिन उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है जिनका कोई वैलेंटाइन ही ना हो :D । ख़ैर तो हम भी ऐसे ही करीब 40 लोगों की जमात में शामिल होकर चले गए ट्रैंकिंग के लिए। सिमरोल से आगे मेहंदी बागोदा में गाड़ियाँ रखकर हम लोग 2 किमी पैदल चलकर पहाड़ तक गए, और फिर 1 किमी खड़े उतार से होकर नीचे गए। वहाँ से लगभग 2 किमी फिर अगले पहाड़ पर चढ़ाई की और फिर 1 किमी नीचे जाकर हमें जूना पानी का कुण्ड भी दिखाई दिया। इन्हीं पहाड़ी इलाकों में हमें 4-5 चंचल हिरणियों का झुण्ड भी इठलाता हु्आ पहाड़ों पर मस्ती करता हुआ दिखाई दिया। अद्भुत दृश्य था वो भी। ख़ैर ये आंनद का परिदृश्य जल्द ही दर्दनाक अनुभव में तब्दील हो गया जब जूना पानी कुण्ड में नहाते समय हम पर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया। मधुमक्खियाँ नहीं भमरमाल कहिए (यह मधुमक्खियों की देशी प्रजाती होती है-मोटी मोटी और बड़ी घातक)। आगे क्या हुआ होगा ये पढ़ने के पहले ही शायद आपको हँसी आ जाए फिर भी आपको ये अनुभव सुनाना मुझे बहुत ज़रूरी लग रहा है!
कच्छे-बनियान और गीले शरीर के साथ में मधुमक्खियों ने हम पर क्या असर छोड़ा होगा ये तो आप अंदाज ही लगाइए। किसी की दुआ ही रही होगी कि हम बच गए और 10-15 मक्खियों को ही मेरे ख़ून का स्वाद चखने का मौका मिला। क्योंकि उनसे बचने के लिए हम लगभग 1 घंटे तक कड़कते ठंडे पानी में बिना किसी हलचल के लेटे रहे। शुरू में जैसे ही मधुमक्खियों का हमला हुआ हम पानी से बाहर भागे ताकि भागमभाग में कोई डूब ना जाए। लेकिन जैसे ही मैं बाहर की ओर भागा मानो उलटा भूत माथे चढ़ गया। यकीनन मेरे भागने से ज़्यादा स्पीड उन जीवों की थी जिन्हें इस बार मधुरस से ज़्यादा स्वाद हमारे ख़ून में आ रहा था। बाहर निकलते ही मुझे अभिताभ बच्चन के “पा” डांस की याद आ गई और मेरे भी दोनों हाथ कभी अपने सर पर, तो कभी सीने पर, तो कभी पीठ को खुजाते रहे। अमिताभजी और मेरे डांस में बस फ़र्क इतना रहा कि वे मनोरंजन में नाचे थे और हम रूदन में नाच रहे थे। और यकीनन इस अनोखे डांस में हमारी स्पीड भी उनसे 10 गुना अधिक ही थी। इसलिए मुझे वापस पानी में लौटना पड़ा।
वैलेंटाइन डे पर सुबह अपनी माँ को प्यारी सी पप्पी देकर घर से निकलते वक़्त ये ज़रा भी ख़्याल नहीं था कि आज हमें और कितनी पप्पियाँ मिलने वाली हैं। यूँ तो मैं प्यार के ऐसे झमेलों से सदा ही दूर रहा हूँ। किंतु अगर कोई आकर ख़ुद ज़बरदस्ती कर जाए तो क्या किया जा सकता है। 14 फ़रवरी 2010 को भी कुछ ऐसा ही हुआ। हमें अकेला पाकर मधुमक्खियों ने तो ऐसे हमला किया जैसे उनमें होड़ लग गई हो कि ये जनाब हमारे हैं और वो ख़ातून हमारी हैं। वो लाल ड्रैस वाली को मेरी पप्पी मिलेगी तो किसी ने कहा... अरे! वो सफ़ेद बनियान वाला जवान मेरा है!!! मुझे भी कुछ मधुमक्खियों ने मौका पाकर घेर ही लिया। उन्हें तो जैसे मेरा सामूहिक बलात्कार करना था। मेरे पास आकर सीधे अपने प्यार का इज़हार कर दिया उन कमबख़्तमारियों ने। दो-चार तो मेरे मुँह में जाकर ब्रह्मांड घूम आईं जैसे मैं बाल कृष्ण हूँ। वे सब तो जेट स्पीड में आईं और कहा – पंकज..... वी लव यू, वी लव यू, WE LOVE YOU.... पुच्च्च्च...पुच्च्च्च...पुच्च्च्च...पुच्च्च्च...पुच्च्च्च!!!!! और ऐसी पप्पियाँ दीं कि बाद में अगर मैं चाहता भी तो वैलेंटाइन डे पर (अग़र ग़लती से कोई मिल जाती तो भी) अपने प्यार का इज़हार करके उसे पप्पी नहीं दे सकता था। पप्पी तो छोड़िये झप्पी देने का भी मन नहीं होता।
ख़ैर भमरमाल का आतंक थमते ही हम वहाँ से निकलने को तैयार हो गए और जिसके हाथ में जिसका सामान आया लेकर ऊपर चढ़ने लगे। मोबाइल के सिग्नल मिलते ही सबसे पहले इंदौर के साथियों को और 108 पर एम्बूलेंस को ख़बर की गई। हमारे पूरे समूह की औसत आयू लगभग 28-30 के बीच रही होगी। चढ़ाई शुरू करते ही एक महाशय ने तो इतना तक कह दिया कि मुझे मर जाने दीजिए और आप लोग आगे बढ़ जाइए। पर यूथ होस्टल के साथियों का जज़्बा यूँ ही नहीं हारने वाला था। और ऊपर से ख़बर लगते ही गाँव वाले भी ताबड़तोड हमारी मदद के लिए आ चुके थे। उन महाशय के लिए बम्बूओं के सहारे शैया बनाई गई और उन्हे ऊपर लाया गया। बाक़ी साथियों को एक-दूसरे के सहारे ऊपर तक लेकर आए। हम जैसे कुछ लोग जो मधुमक्खियों का अधिक आहार नहीं बने थे, वे दरअसल दूसरों का सहारा बनने में अधिक पस्त हो चुके थे। फिर भी ये संघर्ष जीत ही लिया सभी ने।
घायलों और घबराए हुए साथियों को अस्पताल पहुँचाने के बाद मेरी भी सांस फूल गई थी। इस पूरी दुर्घटना में जितना शारीरिक त्रास हुआ उससे कही अधिक प्रभाव मानसिक तौर पर हुआ था। मनौवैज्ञानिक तौर पर अंत में सभी पस्त हो चुके थे। लेकिन ख़ुशी इस बात की थी कि कुछ भी अनहोनी नहीं हो पाई।
दोस्तों और जानने वालों को जब ये ख़बर मिली तो उन्हें मेरे चाँद से रौशन चेहरे को देखने की लालसा जाग उठी। ख़ैर मुझे देखकर उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उस रात को इतना असर नहीं हुआ था। अगली सुबह तो ख़ुद का चेहरा भी पहचाना नहीं जा रहा था। हाथ-पैरों की अकड़न अलग। इसलिए ही तत्काल ये पोस्ट नहीं लिख पाया। चूँकि अब सब कुछ सामान्य हो गया है। ये अनुभव आपकी नज़र पेश कर दिया हमने। इसी बहाने वैलेंटाइन पर मिली ये अनोखी पप्पियाँ हमेशा याद रहेंगी। अब इस वाकिये पर हँसना है या सहानुभूति देना है ये आप पर है। ख़ैर मुझे तो हँसी ही आ रही है। सो आप भी बेतकल्लुफ़ हो जाइए। Just BEE Happy. :D
अरे हाँ! यदि किसी लड़की को ये अनुभव पसंद आया हो तो मैं यही कहूँगा "Will you BEE My Valentine"!!!
चित्र: हमेशा की तरह गूगल से साभार!
ha ha panki mama isiliye kaha tha ek girlfrd bana lo atleast bee ki kiss to nahi leni padti :)
ReplyDeleteAww! 1st of all, Blog is written really well..
ReplyDeleteAnd, shaan se kehna ab aap,
Ki apki 12-15 valentine thi 14th feb 2010 ko..
:D
बधाइयाँ! :-) वेलेंटाइन डे की ;-) इतनी दूर इतने लोग गए, किलोमीटर के आंकड़े दे दिए पर फ़ोटो कहाँ हैं। अरे घूमने जाओ तो फ़ोटो लेकर आना चाहिए ताकि हम जैसे कभी घर से ना निकलने वाले भी वो जगह तो देख लें।
ReplyDeleteऔर इस बार तो अपने अपने सुंदर पप्पीकृत मुखड़े का फ़ोटो तो ज़रूर बताना था। मारूति नंदन खुश हो जाते :-)
very good sir kya tippani he . sari microdetails k sath. vaise pappiyo k liye aapko badhaiyaaaan !!!! and take care
ReplyDeleteyamini