Thursday, December 23, 2010

शब्दों के मोल - सो... सोच समझ कर बोल!

शब्द - हर एक शब्द का अपना मोल है। कई मतलब हैं, कई भाव हैं।

कल एक वाकये ने इन्हीं शब्दों के मोल के ऊपर कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया। कुछ लिखकर दोस्तों के बीच साझा किया। शायद उन चंद शब्दों का असर प्रभावी रहा। शावर की नॉब खुलते ही झर-झर बरसती पानी की बूँदों की तरह कई सवाल मेरे सामने आ गए। मेरे शायराना मिज़ाज़ का अचानक परवान चढ़ने का सबब पूछा जाने लगा? मुझसे मेरी ख़ैर-ख़बर ले ली गई? स्वास्थ्य के हालात से लेकर दिल की तबीयत तक की बातें उगलवाने के लिए लोगों के मैसेजेज़ और फ़ोन आने शुरू हो गए? जब दो पंक्तियों का असर ऐसा रहा, तो रहा न गया। वो शब्दों का सिल‍सिला आगे बढ़ाने का मन किया।

शुरूआत दो पंक्तियों से हुई, और अंजाम तक आते-आते एक कविता की रचना भी हो गई। उसी को नज़र कर रहा हूँ!!!


~ शब्द ~

कभी सोचा था...शब्द बहुत कीमती हैं!
आज कुछ बोलकर, नुकसान कर लिया।


बनिये की तरह तोलकर रखे थे,
कुछ हल्के, तो कुछ भारी,
कोई बस एक लफ़्ज़ भर है,
किसी में छुपी है कहानी सारी,
कुछ शब्द रेशम में लिपटे रखे हैं,
कुछ कटु-कठोर से,
बेतरतीब बेपरवाह पड़े हैं।
इनकी दुकान खोलकर, नुकसान कर लिया।
आज कुछ बोलकर, नुकसान कर लिया।


अलग-अलग रंगत है शब्दों की,
कुछ सोच ही में रहकर परेशाँ करते हैं,
तो कुछ बरबस यूँ ही निकल पड़ते हैं,
स्नेहिल से मीठे-मीठे कुछ,
सभी को रास आते हैं,
कुछ अपनी कड़वाहट से कभी,
रिश्तों पर भारी पड़ जाते हैं।
उलझा देते हैं कुछ - पहेली जैसे,
शब्द एक - मतलब कई,
आख़िर ठीक समझें, तो कैसे? 
वहीं, शब्द कुछ सटीक से,
झट से स्पष्ट हो जाते हैं।
काँटों से चुभते भी हैं,
और फुलों की तरह मुरझाते हैं।
ये शब्दज्ञान टटोलकर, नुकसान कर लिया।
कुछ शब्दों को खोकर, नुकसान कर लिया।
आज ज़रा कुछ बोलकर, नुकसान कर लिया।

~ पंकज