जीवन, अभिनय, और बड़ा होना एक SONGहँस है।
अगर मैं इसे सीधे और स्पष्ट शब्दों में इस प्रकार लिखूँ कि “जीवन, अभिनय, और बड़ा होना एक संघर्ष है” तो आपको समझने में ज़रा भी परेशानी नहीं होगी और आप इससे सहमति भी जता देंगे। तो फिर ये SONGहँस और संघर्ष का क्या तालमेल??? वाकई अजीब कहानी है!!! इसलिए तो बैठ गया इसको शब्दों में पिरोने के लिए। कई लोगों से सुना है कि क्रिएटिविटी यानि कल्पनाशीलता कहीं से सीखी नहीं जा सकती वो तो विचार स्वरूप आपके अंदर बसती है और समय-समय पर ऊछलकर आपके सामने कूद पड़ती है। मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ जिसने कल्पनाशीलता के असीमित होने का अहसास करा दिया। 24 जनवरी 2010 का दिन जब इंदौर की यूथ होस्टल यूनिट के साथ बड़वाह के पास च्यवनऋषि और मोदरी माता के आश्रम ट्रैकिंग पर जाने का कार्यक्रम बना।
कई दिनों बाद जंगल में भटकने का मौका मिला तो उसे छोड़ने का मन नहीं किया। रविवार के दिन अलसुबह तैयार होकर लगभग 80 लोगों के साथ एक बस में सवार होकर इस दिन को प्रकृति की शांति और सौंदर्य के बीच बिताने के लिए निकल लिया। लेकिन ये नहीं पता था कि इस यात्रा पर प्रकृति, सौंदर्य, शांति, पहाड़ों के अलावा कोई और बात होगी जो जिंदगी भर हमेशा याद बनकर रहेगी। यहाँ उन्हीं यादों को बाँट रहा हूँ।
इन 80 लोगों के झुण्ड में 4 लोग बिलकुल एकतरफ़ा हो गए थे। या फिर ये कहूँ कि खो गए थे अपने आप में और रास्ते का समय काटने के लिए खेले जाने वाले उनके अनोखे खेल में। बस में एक तरफ़ अंताक्षरी शुरु हो चुकी थी। कुछ देर हम भी खेले और फिर बाद में सोचा कि बचा-कुचा समय काटने के लिए हम वो बचपन वाला खेल खेलते हैं जिसमें मूक अभिनय के माध्यम से अपनी टीम के व्यक्ति को एक फ़िल्म का नाम बताना होता है। Dumb Sheraz कहते हैं इस खेल को।
शुरू में तो बस मस्ती करने के लिए इसे खेलना शुरू किया, लेकिन बाद में यही खेल दिन को यादगार बनाने का कारण बन गया। मैं इसकी मात्र दो उदाहरण बताता हूँ जो ये बताने के लिए काफ़ी हैं कि कल्पना की कोई सीमा नहीं हो सकती कोई बंधन नहीं हो सकता –
- यदि आपको कहा जाए कि अक्षय कुमार की फ़िल्म संघर्ष को मूक अभिनय करके दर्शाइए तो आप क्या करेंगे??? कल हमने क्या किया ये सुनिए! ये नाम हमने अपने विरोधियों को दिया था। तो उनमें से अभिनय करने वाली दोस्त ने सबसे पहले तो गाना गाने के हाव भाव बनाए और फिर अचानक हँसने लगी। बाद में “गाना” बन गया “Song” और फिर हँसने से “हँस” को अलग किया गया। अब इन दोनों को मिलाकर बना “Songहँस”। अब आया असली ट्विस्ट जिस प्रकार “मरा-मरा” के लगातार उच्चारण से “राम” निकलता है, वैसे ही Songहँस को निरंतर अलग-अलग तरह से हिंदी, अंग्रेज़ी, पंजाबी, बांग्ला में बोलते रहने पर निकला “संघर्ष” और उन्हें उत्तर मिल गया।
- अब हमें फ़िल्म “ब्लफ़मास्टर” का नाम बताना था कैसे किया जाए??? तो सबसे पहले “बल्ब” सुझाया फिर उसे इंदौरी स्टाईल में “बलफ़” किया। “मैं” से “मा” निकाला। “सिर” से “स”, “टांग” से “ट” और “रम” से “र” निकाला। और इन सबको जोड़कर बन गया “बलफ़मासटर” फिर इसे अंग्रेज़ी लहजे में बुलवाने पर आया “ब्लफ़मास्टर”।
- अब वास्तव, वजूद, बेताब, मि. एंड मिसेज़ अय्यर, मिशन इंस्तांबुल, घातक, काबुल एक्सप्रेस, ग़ुलाम-ए-मुस्तफ़ा जैसे नामों के लिए क्या-क्या किया गया होगा ये आप ख़ुद कल्पना कीजिए!!!!
ऐसे उत्तर मिलने के बाद ख़ुद की सोच और उसे क्रियान्वित यानि कि एक्ज़िक्यूट करने के पागलपन पर हँसी तो आनी ही थी। हँसी भी इतनी कि पेट की आँतें भी रहम माँगने लगें! अगर आपने भी इस दृश्य को मन ही मन देख लिया है तो आप भी हँस सकते हैं। ठीक वैसे जैसे कि ट्रैक पर गए बाकी साथी हमें देखकर मन ही मन हँस रहे थे और आनंदित भी हो रहे थे। वो भी इस खेल में शामिल तो होना चाहते थे पर चूँकि वो अब बच्चे नहीं थे बड़े हो गए थे, इसलिए इस खेल में शामिल नहीं हुए। वाकई बड़े होने पर इच्छाओं को मारना सीख जाते हैं हम।
ख़ैर, कल दिनभर यही सिलसिला चलता रहा और शाम हो गई। इंदौर पहुँचते-पहुँचते भी ना जाने कितनी ही फ़िल्मों के नाम इसी तरह से समझने या समझाने की कोशिश करते रहे हम लोग। घर जाने तक का मन नहीं किया। ऐसा लगा कि बस ये सफ़र यूँ ही चलता रहे और हम यूँ ही अभिनय करते रहें कल्पना करते रहें।
ये छोटा सा खेल तो कल एक बहाना बन गया था। बीच-बीच में ये विचार कई बार आता रहा कि यह खेल तो अभिनय और सृजनशीलता के नए मापदंड स्थापित करने का माध्यम सा बन गया है। अंदर से आवाज़ आने लगी कि किस शब्द को कितनी जल्दी और कितने बेहतर या अलग ढंग से समझाया जा सकता है। वाकई बचपन के खेल सिर्फ़ खेल नहीं होते हैं। वो बच्चों को बड़ा बनाने का काम करते हैं उन्हें कुछ, नहीं दरअसल बहुत कुछ सिखाते हैं। लेकिन दुखद ये है कि वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो वही सारे खेल फिर से खेलना उन्हें बचकाना सा लगने लगता है!!! अजीब चक्र है इन खेलों का और बचपन का। है ना?
इंदौर पहुँचते ही हमें ना चाहते हुए भी खेल रोकना पड़ा और हम चारों दोस्त खेल को वहीं छोड़कर घर को निकल लिए उससे मिली यादों के साथ। लेकिन सच ही है अगर आपमें बचपन ज़िंदा है तो खेल आपको कभी नहीं छोड़ता। इसका भी जवाब है। क्योंकि जैसे ही मैंने घर में पैर रखा, टीवी देख रहे मेरे बापू ने मुझसे यही पूछा “अरे! पंकज इस फ़िल्म का नाम क्या है?” मैंने उन्हें फ़िल्म का नाम “भागमभाग” बताया और हँसी रोकता हुआ अपने कमरे में चला गया। तब एक बात समझ आई कि चाहे हम कितने ही बड़े क्यों न हो जाएँ, “जीवन” में कितनी ही “भागमभाग” रहे, उसके बावजूद भी हमें अपने बचपन के पल जीने का “Songहँस” जारी रखना चाहिए, और ऐसे पल चुराने के लिए समय के साथ “बलफ़मासटरी” करते रहना चाहिए।
तो जब भी मौका मिले खेलिएगा ज़रूर!!!
सभी चित्र: गूगल से साभार
very nice yaar , achcha aap likhte hai ye toh hum humesha hi kahte aaye hai isi tarha likhte jaye aap bahot aage jayenge.
ReplyDeletevery nice.....the way u link a simple game with childhood n life....while playin we never think of so many small thingssss.....really ye kissa or trip bhule ni bhulegi,.....hatss offff.....gr8 work....keep it up....
ReplyDeletetauba tumhare ye ishare .................grttt yaar this game is everybodyzzz all time favourite game .....and it is a very important chapter of life even ..............kai baar situations aise hote hai ki apni baat isharo se hi samjhani padti hai aur samjhni bhi padti hai.........so keep learning and keep enjoying...bless you
ReplyDeletemazing tht day was..!mazing u n thtks to u to rememorize tht platinum dy through it,..un beatbl day tht was..khup mast likha hee..!
ReplyDeletehum vo din kabhi nhi bhul sakte..!SONGहस .. hahahaaahh...mind itt..""
creativity!!
ReplyDeleteअरे पिंकू, बाकी सब तो ठीक है, पर तू 24 नवंबर 2010 को ट्रैकिंग पर कैसे गया। क्या इसी को बलफ़मासटरी कहते हैं?
ReplyDeleteएक बात और यहीं ब्लॉगर पर बने रहना और नियमित लिखते रहना। पढ़ने वाले बहुत हैं।
ReplyDelete@ धन्यवाद अतुलजी!!!
ReplyDeleteऊ का हे कि इस Songहँस को कलमबद्ध करते करते हम खो गए थे। इसलिए महीना लिखने में गड़बड़ हो गई। अब सुधार कर दिया है।
wow yaar great link of game nd life i really like bhagambhag,zindagi jine ka salika sikha rahe ho boss-shwetu
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