Tuesday, March 15, 2011

पाठ पुस्तक के... सीख जीवन की...


गम्मती के साथ हर सफ़र में कहानी होती है... और कभी कुछ नहीं होता है तो कहानियाँ पढ़ने बैठ जाता हूँ। अभी हाल ही में कुछ उलझे मामलों का सामना करने और ख़ुद की उलझनों को लेकर इंदौर जाने का मौका बन पड़ा। सब कुछ ठीक रहा, ठीक वैसा जैसा किसी शक्ति ने सोचा था शायद वैसा हो गया। शुरू के चार दिन उसी शक्ति के फ़रमान को मुस्कुरा कर मानने में निकल गए। फिर दिल्ली वापस लौटने की ताक़त नहीं बची थी। तो दो दिन घर पर रूक गया। दिल्ली लौटने के लिए रविवार का दिन मुकर्रर हो गया था। सो, तय समय पर ट्रेन पकड़कर अपनी सीट पर जम बैठा।

पिछले दो-तीन महीनों में रिश्तों के मकड़जाल के बीच उलझते और घुटते और परेशान होते दोस्तों को महसूस किया था। और ख़ुद भी इसी उलझन का हिस्सा भी बन गया। अब तो कई किस्से अपने मुक़ाम तक पहुँच भी गए। हमेशा रिश्तों को हम कच्ची डोर मानकर बनाते हैं। लेकिन जब उस कच्ची डोर में कहीं कोई बल आता है और वो टूट जाती है तो हम उसके बचे-खुचे रेशों तक को देखने तक से कतराने लगते हैं। हम जब भी अपने घर में एक सुंदर शोपीस सजाते हैं तो उसे देखकर ख़ुश होते हैं, लोगों को भी दिखाते हैं, तारीफ़ भी पाते हैं। लेकिन जब उस पर थोड़ी सी खरोच या टूट-फूट होती है तो उसे हटा देते हैं। लेकिन कभी-कभी हम उसकी जगह पर जमी धूल को हटाने की कोशिश नहीं करते हैं जो बाद में उसी जगह को दाग़दार कर देती है जहाँ कुछ दिन पहले एक नुमाइशी पसंदीदा चीज़ हुआ करती थी। रिश्तों का भी खेल कुछ ऐसा ही है। कुछ कारणों से ग़र टूट भी जाते हैं तो हम उसकी धूल तक को हाथ नहीं लगाते हैं, क्योंकि हम उसे पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहते हैं। यहाँ तक कि उसकी अच्छी यादों को भी...
 ख़ैर, सफ़र के दौरान रात में पुस्तक पढ़ने का मन किया तो कॉलेज में विजेता बनने पर उपहार स्वरूप मिली पुस्तक को खोल लिया। सामने जो पृष्ठ आया उसे पढ़ना शुरू किया। इत्तेफ़ाक मेरे साथ बहुत होते हैं- इस आलेख को पढ़ेंगे तो आप भी समझ जाएँगे कि जो कुछ भी इस दौरान हुआ है वो सब इस आलेख में झलकता है जिसे पढ़कर मुस्कुराते हुए मैं नींद के पहलू में चला गया। उसी दौरान एक मित्र का फ़ोन आया और उसने सीधे यह पूछा कि "इतनी जल्दी सो गए, क्या इस बार कुछ पढ़ने के लिए नहीं ले गए हो?" तब मैंने कहा था कि दिल्ली पहुँचते ही सबको पढ़वाउँगा, क्योंकि यह सबसे जुड़ेगा। वही आलेख आप सभी लोगों के लिए यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ...आलेख से मैं सहमत हूँ और इसके संबंध में मेरा अनुभव तो ऊपर पढ़ ही लिया है... आप अपना अनुभव नीचे ज़रूर बताइएगा।


Happily Even After

Use no relationship to hold you to the past,
But with each one each day be born again.
- A Course in the Miracles

On Father's day, My friend Danielle took her two former husbands out to dinner. “I wanted to honour the two most important men in my life,”she told me. “They are the fathers of my children, and we are all related.” I respected and honored Danielle for keeping her former mates in her heart and acknowledging the good they had brought into her life.
Most of us are taught that when a relationship is over, both parties go their way upset; one is the villain and the other a victim. But what if suffering is optional? What if we can create our partings in any way we choose? What if we don’t have to separate in anger or guilt, but go on to enjoy a friendship that lasts a lifetime and beyond?
We can let go of our old models of isolation and separation and replace them with kindness, caring, intimacy and support. Because we are spiritual beings, it is not what our bodies do that determines the quality of our lives, but the state of our spirit. Although our bodies may go in different directions, we can remain whole and joined in the heart. The end of a marriage or a relationship does not mean end of love. True love spans far beyond the boundaries we have laid over it, and it does not die; it simply goes on gathering force until everyone and everything we look upon is blessed by our appreciation of each other as gifts from God.

I pray to honor the people in my life no matter what the voice of fear tells me. I will give love no matter what.

My relationships reflect the love of God.
 चित्र: गूगल-गूगल