चिट्ठा जगत को पंकज का प्रणाम
भारत के ह्रदय मध्य प्रदेश और उसके ह्रदय मालवा के इन्दौर का रहने वाला हूँ। इससे अधिक बताने से पहले यह स्पष्ट कर दूँ कि मेरे पूरे परिवार की पिछली जितनी पीढ़ियों को मैं जानता हूँ, उनमें से किसी भी पूज्य ने कभी भी लिखने का दुस्साहस नहीं किया है। लेकिन इसी खानदानी रिवाज़ को तोड़ते हुए मैं मूरख चिट्टाकारिता का अपना सफ़र आरंभ कर रहा हूँ। बचपन से ही माता-पिता ने बड़े अरमानों से दाखिला अंग्रेज़ी माध्यम में करवा दिया और दसवीं के बाद गणित के गुणा-भाग करते हुए विद्यालय से नाता छूट गया। पढ़ाई के साथ-साथ नाचना-गाना, खेल-कूद और अन्य गतिविधियाँ चलती रही जिनके परिणाम स्वरूप ही लिखने-पढ़ने का दुर्गण भी मेरे साथ हो लिया।
साहित्य या पुस्तकों का इतना कीड़ा तो नहीं पर मिल जाए तो छोड़ता भी नहीं हूँ। सहकर्मियों द्वारा और काम के दौरान ही ब्लॉगिंग के बारे में जाना है। शुरुआत परिचर्चा में पंजीकरण द्वारा कर चुका हूँ पर स्वयं का चिट्ठा बनाने की हिम्मत जुटाने में महीना भर लग गया। इसी उधेड़-बुन में रहा कि चिट्टाकारिता में तो बड़े-बड़े गुणीजन अपने सिक्के जमा चुके हैं भला मैं इनके साथ कहाँ टिक पाऊँगा, किंतु फिर सोचा कि जब कोई बड़ी दावत होती है तो तरह-तरह के स्वाद की मिठाइयाँ बनती हैं, नमकीन बनाए जाते हैं और इस प्रकार के स्वादिष्ट भोजन के साथ कुछ कंकड़-पत्थर भी आ ही जाते हैं। तो बस मैं भी शामिल हो रहा हूँ रसीले, मीठे और नमकीन चिट्टाकारों के बीच एक कंकड़ की तरह जिस पर धारे-धीरे कोई स्वाद तो चढ़ ही जाएगा।....
अभी और बहुत कुछ लिखना बाकी है.... पर फिर सही!!!
पंकज भाई हिन्दी चिट्ठाकारी मे आपका हार्दिक स्वागत है। किसी भी प्रकार की सहायता के लिए हम आपसे एक इमेल की दूरी पर है।
ReplyDeleteआप लिखो बिन्दास, हम है ना, पढने और टिप्पणी करने के लिए।
वाह मालवा नरेश स्वागत है आपका। आप किसी जमे-जमाये से आतंकित मत हो। लिखो बिंदास! हम हैं न पढ़ने के लिये और तारीफ़ करने के लिये!
ReplyDeleteपँकज भाई आपका स्वागत है चिट्ठाजगत में। परिचर्चा में तो आपसे मुलाकात हो ही चुकी है। बड़ी देर लगाई भईया चिट्ठा शुरु करने में। अरे भाई एक चिट्ठा ही तो ऐसी चीज है जिसे हर कोई लिख सकता है। आपको चिट्ठाशुरु करने में महीना लगा मुझे तो दो तीन महीने लग गए थे।
ReplyDeleteऔर हाँ ऐसे कम ही लोग होते हैं जो शुरु से ही स्वादिष्ट भोजन होते हैं। यहाँ ज्यादातर कंकड़ पत्थर से शुरुआत करके ही मिठाई, नमकीन जैसे स्वादिष्ट बनते हैं।
"...चिट्टाकारिता में तो बड़े-बड़े गुणीजन अपने सिक्के जमा चुके ह..."
ReplyDeleteतो फिर तो आपका स्वागत् है , और शुभकामनाएँ कि इनके सिक्के उखाड़ फेंको और अपने जमा दो. वैसे आपके लेखन-तरीके से लग रहा है कि सिक्का खरा है, और चिट्ठा बाजार में रोज चलेगा...
भेलकम..
ReplyDeleteस्वागत है भाई..!
ReplyDeleteस्वागत है भाई ...मेरी तरह ज्यादातर यहाँ कंकड़ ही हैं ..आपस में घिस घिसके शंकर होना है
ReplyDeleteगम्मत देख आकर्षित हुआ-खेल को ही कहते होंगे मालवा में भी। आपका खैरम-कदम । लिखते रहियेगा।
ReplyDeleteअनाडी पंकज खिलाडी पंकज का तहे दिल से स्वागत करता है.
ReplyDeleteलिखते रहे मित्र...
खरे सिक्के का स्वागत है.
ReplyDeleteगम्मत गम्मत में बिंदास लिखो. शैली अच्छी है.
apka swagat hai pankaj ji. dua hai aap teji se badhte rahen.
ReplyDeleteयार पंकज ये 'गम्मत' शब्द गीत-संगीत वाले लोकनाट्य के लिये ही लिखा है ना . हमारे राजस्थान में खासकर बीकानेर में इस शैली के लिए
ReplyDelete'रम्मत' शब्द है .
चिट्ठा संसार में आपका बहुत-बहुत स्वागत है .
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है पंकज भाई आपका। महीने भर में ही कूद गए आप तो, अपन को तो दो महीने लगे थे हिम्मत लाने में। गम्मत लिखा देख कर आपके चिट्ठे की ओर आकर्षित हुआ, दर-असल छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति में गम्मत का अपना एक अलग ही स्थान है।
ReplyDeleteगम्मत हिट झाली रे...
ReplyDeleteभईया, पहले दिन इतना स्वागत होने के बाद लापता मत हो जाना। वैस, इंदौर में कुछ गुंडे अपने भी जान-पहचान के हैं- उठवा लेंगे और जबरदस्ती लिखवाएंगे चिठ्ठा।
वेलकम दोस्त
-पीयूष
पधारो साब, इनी चिट्ठा की दुनिया में पलक-पाँवड़ा बिछई ने तमारो सुवागत हे। अबे नेम से चिट्ठो लिखता रीजो। कईं बी तकलीफ वे तो याँ का बड़ा-बूड़ा से बात करजो वी तमारी सब तरे से मदद करेगा।
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