Tuesday, September 13, 2011

वो तो बस इतना ही चाहती है कि...


कितने ही संवाद होते हैं, जो कभी बिना कहे ही व्यक्त हो जाते हैं। दूसरी ओर कितने ही अरमान होते हैं, हसरतें होती हैं जिन्हें अभिव्यक्ति की जुँबा तक आने का समय ही नहीं मिल पाता। या यह भी माना जा सकता है कि अभिव्यक्ति के छोर तक आते-आते वो हसरतें इतनी बुलंद हो जाती है कभी-कभी कि फिर वो शब्दों की मोहताज नहीं रहती।

मैं यह तो नहीं कह सकता कि यह हर लड़की कि कहानी होगी। लेकिन फिर भी शायद आप इसमें अपनी हसरतों का प्रतिबिंब महसूस कर पाएँ!
क्योंकि जब उस लड़की की सोच की बात आई तो यही कुछ पंक्तियाँ निकल कर उभर आईं। अब लड़कियाँ ही बताएँ कि इंसाफ़ है या बस कोरे जज़्बात हैं!


बस इतना ही चाहती हूँ -



हाँ!
मैं प्रेम करती हूँ,
स्वीकाती हूँ तुम्हारी मौजूदगी,
अपने अंदर के वीराँ में,
बस जताती नहीं कभी!


चाहती हूँ मैं इतना कि,


दर्श हो जब तुम्हारा,
दौड़ी आऊँ, गले लग जाऊँ,
जैसे अल्हड़ नदी आवेग में,
लिपटती है ‍चट्टान से,




अनजाने ही,
तुम्हारे हाथों के बीच,
अपनी उंगली सरका दूँ,
उसे तुम्हारी गर्माहट का
जैसे लिहाफ़ ओढ़ा दूँ,


तुम्हारे नज़दीक आते ही,
टिक जाऊँ तुम्हारे कांधे पर,
ये मानकर कि मेरे अस्तित्व की,
तुम ही नींव रहो उम्रभर,


कुछ आगे बढ़कर मैं ही,
चूम लूँ तुम्हारा माथा ऐसे,
कि तुम हो सावन की बूँद,
और मैं बंजर ज़मीन जैसे,


अपनी गोद के तकिये पर,
तुम्हारे बालों में हिरन की तरह,
विचरने दूँ अपनी उंगलियों को,
और तुम्हारे चेहरे पर,
बिछा दूँ अपनी जुल्फ़ों की छत,
कि कोई और फिर कभी,
भीगो न सके तुम्हारी आँखों को,


यह सब मैं,
लेकिन कभी तुम्हें जता कर,
तुम्हें यूँ जीत नहीं सकी!
क्योंकि मैं तुम्हें कभी,
हराना नहीं चाहती,


बस-
चाहती हूँ मैं इतना कि,
हार जाऊँ हमेशा की तरह,
तुम्हारी एक नज़र में ही,
और निढाल होकर बिखर जाऊँ,
कतरा-कतरा तुम्हारे रोम-रोम में!
बस इतना ही चाहती हूँ मैं।
बस इतना ही...


~ पंकज

चित्र: गूगल छवियाँ

3 comments:

  1. kuch kaha nahi jaa ra isko padkar to meri taraf bas ek muskuraht tumhari is feeling ke naam
    :-) cheers!!!!!!!!!

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  2. एक मुस्कुराहट में कितनी व्यंग, मर्म, बेबसी, मोहब्बत, उत्साह जैसी भावनाएँ हो सकती हैं। अच्छी लगी इसलिए धन्यवाद!

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  3. I just hope ki woh jo bhi chaahti ho, tumhe jaldi hi bata de.... Aameen....

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