शब्दों की आवाज़...
चलते-चलते शब्दों का कारवाँ कहाँ से कहाँ ले जाकर छोड़ देता है। एक ख़्याल से शुरू हुई रचना पता नहीं विचारों की दुनिया के किस छोर पर आकर ख़त्म हो कोई नहीं जानता। दिल्ली से बाहर निकलने की बैचेनी इस कदर हुई है कि मेट्रो में एक मित्र से बात करते-करते दिल्ली लगातार बहुत समय तक रहने की बात "घुटन" शब्द तक पहुँच गई। बीते हफ़्ते दीदी ने मुझसे मेरे पास मेरी बाइन ना होने पर आश्यर्च जाताया और सीधे पुछ डाला कि बिना बाइक के ज़िंदा कैसे है तू! जवाब में बस मुस्कुरा दिया। कल दिल्ली से एक हफ़्ते के लिए बाहर जा रहे हैं कुछ काम के लिए, पर जाने से पहले कुछ न कुछ लिखना चाहता था। कल रात बैठकर विचारों के घोड़े दौड़ाए तो इधर-उधर दौड़ने के बाद इन शब्दों की नकेल में बंध गए। हर शेर का अपने कई संदर्भ हैं नीचे की कविता में। आप अपने हिसाब से अपनी ज़िंदगी से जुड़े अर्थ निकालने को स्वतंत्र हैं। बताइएगा ज़रूर कैसी लगी!
आवाज़...
दबे लफ़्ज़ों को मेरे तुम आवाज़ दो,
इश्क़ के नाम से न बांधों पंछी को,
जिसे उड़ना पसंद है उसे परवाज़ दो,
तुम्हारी शिकायतों पर हो मेरी ख़ामोशी,
मुझे तुम सज़ा देकर ख़ुद को इंसाफ़ दो,
नया शहर नए रिश्ते एहसास तो पुराने हैं,
भीड़ में अकेला क्यूँ हूँ कोई तो जवाब दो,
हसरतों की ज़मीन मेरी हुई अब बंजर,
रहने को मुझे हौंसलों भरा आकाश दो,
ख़ौफ़ज़दा कर रहा ये आने वाला कल,
मुस्कुराती यादों का वो मेरा इतिहास दो,
(मन की बैचेनी, टीस और शिकायतों के साथ मुल्क की नज़र कुछ शेर )
धमाके ये क्या ख़ाक बाँटेंगे मेरे घर को,
दो रहीम को शबद, राम को नमाज़ दो,
सबको बुलाकर यूँ लगाओ न बस मेले,
मंद पड़ी इस क्रांति को अब आग़ाज़ दो,
दहशत नहीं मुस्कान हक़ है बचपन का,
गुलों के हाथ गोली नहीं एक किताब दो,
~ पंकज
ude khule aasmaan mein khwabon ke parinde... ;P aisi hi kuchh feel aayi ismein bhi :)
ReplyDeleteदिनों बाद आपकी नई रचना पढकर खुशी हुई. अच्छा प्रयास है लिखते रहिए. बस एक प्रश्न पूछना चाहता हूं यदि अन्यथा न लें- ये आप खुदको गम्मती क्यों कह रहे? आपकी सोच एक गंभीर विचार की ओर बढ रही है उसे अध्ययन के जरिये और भी परिपक्व बनाएं और इसे गम्मत न कहें. बहरहाल, बधाइंया और अध्ययन करें आपसे कुछ और भी बेहतरीन रचनाओं की अपेक्षा है.. अस्तु..
ReplyDeleteaapki rachna padkar kuch aachha to laga par aapne ye kaise kah dia ki aapko protsahan nahi mila
ReplyDeletehum vo pahle shaksh the jisne aapko apne haath kale karne se roka aur kagaj kale karne ke lia uksaya
it dose't mean that i wants credit of it u worth to be this
best wishes for ur future
tumhare sath hamesha
urs
akhil pandit
apne aap ko itne ache shabdo me bandha dekh kar "ghutan" bhi khush ho gayii hogii itna acha likhega ghutan k bare me to jaayegi nahi tujhe chodkar chipak jaayegii.....:-)))))))))
ReplyDeleteReally good creation :-)
apne aapko itne ache shabdo me bandha dekh ke "Ghutan" bhi khush ho gayi hogii.....Ghutan ke liye itna acha acha likhega to kabhi chod kar nahi jaayegi chipak jaayegi tujhse...
ReplyDelete:-)))))))))))))))))))
Good Creation
apne aapko itne ache shabdo me bandha dekh ke "Ghutan" bhi khush ho gayi hogii.....Ghutan ke liye itna acha acha likhega to kabhi chod kar nahi jaayegi chipak jaayegi tujhse...
ReplyDelete:-)))))))))))))))))))
Good Creation