Saturday, January 8, 2011

काग़ज़ का एक टुकड़ा...

नए साल का पहला दिन और दिल्ली की सर्दी मे धूप सेंकते हुए लोग! ऐसे ही शुरू हुआ है यह नया वर्ष।
दिल्ली में रहकर कभी नए साल का स्वागत करने का मौका आएगा यह सोचा नहीं था। हर नए साल की पूर्वसंध्या पर दोस्तों के साथ गर्मागर्म केसरिया दूध पीकर, इंदौर की सड़कों पर घूमने और राजवाड़ा के नज़ारे और माहौल देखने से फ़ुरसत ही किसे थी।
ख़ैर नए साल की शुरूआत में ही पहले सेमेस्टर की परीक्षाओं की तैयारी करने के सुविचार आने लगे थे। इसी सिलसिले में 1 जनवरी को ही दोस्तों के साथ घर पर बैठे थे। पढ़ाई के पन्नों के बीच अचानक एक कोरा काग़ज़ हाथ में आ गया।
लिखने के विचार ऐसे ही टूटते तारों की तरह अचानक से अंधेरे में रौशनी करते हुए आ जाते हैं। सो, अपनी याददाश्त पर पूरा भरोसा करते हुए, चिल्लाते हुए उसी वक़्त लैपटॉप पर दो पं‍क्तियाँ लिख कर रख ली थीं। ;)

सात दिनों के बाद अब वही विचार पूरी तरह सँवारने का प्रयास किया है।


काग़ज़ का टुकड़ा...

यूँ ही उड़ते हुए हाथ लगा,
एक काग़ज़ का टुकड़ा बिलकुल कोरा,
रेगिस्तान सा वीरान,
सोचा पलट कर देखूँ,
पर दूसरी ओर भी सुनसान,


सोचा लिख दूँ अपनी कोई कहानी इस पर,

या एक नज़्म ही उकेर दूँ,
अपनी उर्दू के लिफ़ाफ़े से निकालकर,
किसी अजनबी के नाम प्रेम पत्र लिखूँ?
या फिर चिट्ठी लिख दूँ घर पर,
कि बहुत दिन हुए माँ तुम्हें देखा नहीं है।
या अपनी मासूम बेटी के हाथ थमा दूँ,
शायद वो ही इसे काला कर दे क्योंकि,
वो भी अपनी लकीरों से खेलने लगी है,
क्यों न सँभालकर रख लूँ कल तक,
और सुबह का कचरा इसी में दफ़ना दूँ,
कहो तो इसी पर दोस्तों के नाम,
अपनी सारी ख़ुशियों की वसीयत बना दूँ,

लेकिन...
बचपन में सुना था कि,
प्याज़ की स्याही से लिखकर,
काग़ज़ को आँच दिखाने पर,
सुर्ख़ लाल अक्षर उभर आते हैं।
सोचा क्यों न इस कोरे काग़ज़ पर,
लिख दूँ अंतरमन की सारी भावनाएँ,
मैं भी अपने आँसूओं से!!!
किसी ह्रदय में कभी तो आग लगेगी,
संभवत: तब मेरी भावनाएँ,
इस काग़ज़ के मानिंद कोरी न रहेंगीं!!!

~ पंकज


चित्र: गूगल

8 comments:

  1. पकंज प्यारे !!!!
    अगर यह स्वरचित है, तो बहुत प्यारी है
    बधाई, ब्लोगर्स में शामिल होने के लिए
    लिखते रहो!!! स्नेह, आशीष, मंगल कामनाएं

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  2. thats what ur innocence dear...it was amazing... one of the best creation of urs... hats of to u pankaj, keep it up...

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  3. jharu......tu kya hai....????sach ....kon hai???

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  4. सेहबा मैम- जी हाँ यह कविता स्व‍रचित ही है।
    स्नेहाशीष के लिए धन्यवाद!

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  5. trupti latpate
    jo bin bole sbkuch kah deta h,jo bin sune sbkuch smjh leta h,jb shbd se khne aur smjhne ki koshish krega to aisa hi hoga na.

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  6. tumhari kalam se nikali dusri rachnao ki trh ye bhi bht sundar hai pankaj.....

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  7. किसी ह्रदय में कभी तो आग लगेगी,
    संभवत: तब मेरी भावनाएँ,
    इस काग़ज़ के मानिंद कोरी न रहेंगीं...

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... लगा मानों किसी ने मेरी भावनाकों को पढ़ कर कागज पर रख दिया...

    साधुवाद!!!

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