काग़ज़ का एक टुकड़ा...
नए साल का पहला दिन और दिल्ली की सर्दी मे धूप सेंकते हुए लोग! ऐसे ही शुरू हुआ है यह नया वर्ष।
दिल्ली में रहकर कभी नए साल का स्वागत करने का मौका आएगा यह सोचा नहीं था। हर नए साल की पूर्वसंध्या पर दोस्तों के साथ गर्मागर्म केसरिया दूध पीकर, इंदौर की सड़कों पर घूमने और राजवाड़ा के नज़ारे और माहौल देखने से फ़ुरसत ही किसे थी।
ख़ैर नए साल की शुरूआत में ही पहले सेमेस्टर की परीक्षाओं की तैयारी करने के सुविचार आने लगे थे। इसी सिलसिले में 1 जनवरी को ही दोस्तों के साथ घर पर बैठे थे। पढ़ाई के पन्नों के बीच अचानक एक कोरा काग़ज़ हाथ में आ गया।
लिखने के विचार ऐसे ही टूटते तारों की तरह अचानक से अंधेरे में रौशनी करते हुए आ जाते हैं। सो, अपनी याददाश्त पर पूरा भरोसा करते हुए, चिल्लाते हुए उसी वक़्त लैपटॉप पर दो पंक्तियाँ लिख कर रख ली थीं। ;)
सात दिनों के बाद अब वही विचार पूरी तरह सँवारने का प्रयास किया है।
काग़ज़ का टुकड़ा...
यूँ ही उड़ते हुए हाथ लगा,
एक काग़ज़ का टुकड़ा बिलकुल कोरा,
रेगिस्तान सा वीरान,
सोचा पलट कर देखूँ,
पर दूसरी ओर भी सुनसान,
सोचा लिख दूँ अपनी कोई कहानी इस पर,
अपनी उर्दू के लिफ़ाफ़े से निकालकर,
किसी अजनबी के नाम प्रेम पत्र लिखूँ?
या फिर चिट्ठी लिख दूँ घर पर,
कि बहुत दिन हुए माँ तुम्हें देखा नहीं है।
या अपनी मासूम बेटी के हाथ थमा दूँ,
शायद वो ही इसे काला कर दे क्योंकि,
वो भी अपनी लकीरों से खेलने लगी है,
क्यों न सँभालकर रख लूँ कल तक,
और सुबह का कचरा इसी में दफ़ना दूँ,
कहो तो इसी पर दोस्तों के नाम,
अपनी सारी ख़ुशियों की वसीयत बना दूँ,
चित्र: गूगल
पकंज प्यारे !!!!
ReplyDeleteअगर यह स्वरचित है, तो बहुत प्यारी है
बधाई, ब्लोगर्स में शामिल होने के लिए
लिखते रहो!!! स्नेह, आशीष, मंगल कामनाएं
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http://sehba-inkdrops.blogspot.com/
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thats what ur innocence dear...it was amazing... one of the best creation of urs... hats of to u pankaj, keep it up...
ReplyDeletejharu......tu kya hai....????sach ....kon hai???
ReplyDeleteसेहबा मैम- जी हाँ यह कविता स्वरचित ही है।
ReplyDeleteस्नेहाशीष के लिए धन्यवाद!
mast hai bhai
ReplyDeletetrupti latpate
ReplyDeletejo bin bole sbkuch kah deta h,jo bin sune sbkuch smjh leta h,jb shbd se khne aur smjhne ki koshish krega to aisa hi hoga na.
tumhari kalam se nikali dusri rachnao ki trh ye bhi bht sundar hai pankaj.....
ReplyDeleteकिसी ह्रदय में कभी तो आग लगेगी,
ReplyDeleteसंभवत: तब मेरी भावनाएँ,
इस काग़ज़ के मानिंद कोरी न रहेंगीं...
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... लगा मानों किसी ने मेरी भावनाकों को पढ़ कर कागज पर रख दिया...
साधुवाद!!!